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क्या यहीं जिन्दगी है..?*

  • Writer: Vinita
    Vinita
  • Feb 17, 2020
  • 1 min read

ख्वाइशें पूरी करते करते,

निकलता था दम, तब..

ख्वाबोंको कुचलकर झुकते है,

दुनियाके सामने, अब..

क्या यहीं जिन्दगी है..?


खुशियोंको पकडते हुए,

जिंदगी निकल जाती, तब..

खुशियोंके बाजारमें,

अपनी खुशी ढूँढ रहे, अब..

क्या यहीं जिन्दगी है..?


अधुरा जी लेते थे,

दवा ना होनेसे, तब..

लंबी उमर जीते है,

मौतको गले लगाके, अब..

क्या यहीं जिन्दगी है..?


जिन्दगीके सवालोंसे परेशान है,

अब भी, और तब..

सवालोंके जवाब भी सवाल थे,

तब भी और अब..

क्या यहीं जिन्दगी है..?


फिर धुंधले होते थे सवाल,

सहरकी रंगोंके साथ, तब..

फिर उम्मीदे जागती है,

सितारोंकी चादर ओढनेके बाद, अब..

*शायद यहीं जिन्दगी है..*


विनीता धुपकर

 
 
 

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